हम उसे बेइंतहा मोहब्बत करते हैं , ये बातायें कैसे ? उसकी ताबिज़ पर नाज़ है हमें , ये पैगाम पहुँचाये कैसे ? चन्द घड़ी ही तो हुई हैमुलाकात की, उसे पलकों में बिठायें कैसे ?
सुना है की वो प्यार में हद से गुज़र जाती है ,खुदको यक़ीन करयें कैसे !! दिल, दिमाग और आठों प्रहर की चैन, अब हम उस परलुटायें कैसे ? शरीक होती थी वो लाल किले के बंद कमरों में हमारे साथ, पर हाथों पे हाथ मिलायें कैसे ?
जलती थी वो भी हमें किसी और के साथ देख कर, वो आँखों में गुस्सा समझायें कैसे ? तक़दीर लिखी दी थी ख़ुदा ने इक कुनबे में, वो जान तुम हो यह बतायें कैसे? मुकद्दर में मिली थी तनहाई हमें, इक बेनूर ज़िन्दगी, तेरे आगमन नें हज़ार रंग भर दी, तुझे बतलायेंकैसे !!
सरगम
No comments:
Post a Comment